अर्जुन रॉय ने अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लिया था।
अपने पुराने शहर को छोड़कर एक नए शहर में शिफ्ट होना, जहाँ न उसे कोई जानता हो, न ही उसकी पुरानी ज़िन्दगी का कोई हिस्सा हो।
अर्जुन, एक normal कॉलेज student, अपनी पुरानी ज़िन्दगी से थोड़ा थका हुआ महसूस कर रहा था। काफी वक्त से उसे ऐसा लग रहा था कि कुछ कमी है, कुछ गायब सा है। लेकिन फिर भी उसने कभी अपने दिल की नहीं सुनी थी, और ये सोचकर ही नए शहर के लिए ट्रेन पकड़ ली थी।
एक छोटा सा शहर था जहाँ अर्जुन को अपने कॉलेज के लिए एडमिशन मिल गया था। यह शहर काफ़ी पुराना था, और यहाँ की गलियाँ और बस्तियाँ जैसे किसी दूसरी दुनिया का हिस्सा लगती थीं।
अर्जुन ने सोचा था कि यह नई शुरुआत उसके लिए कुछ अच्छा लेकर आएगी। काफी समय से अपनी पुरानी ज़िन्दगी में वह किसी फंसी हुई हालत में महसूस कर रहा था। कॉलेज के बाद, कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि हर दिन बस दूसरे दिन का ही अंजाम है।
नए शहर में आने के बाद, अर्जुन का पहला दिन कुछ खास नहीं था। अपने नए कमरे में जाकर, उसने अपने घर की पुरानी यादों को अपने दिमाग से दूर करने की कोशिश की। हर चीज़ नई थी, नए लोग, नए दोस्त, और नए अनुभव। अर्जुन ने खुद को नए शहर में ढालने के लिए कुछ दिन दिए, लेकिन एक अजीब सी खामोशी थी, जो उसे हमेशा महसूस होती थी।
कॉलेज के दिन तेज़ी से गुजर रहे थे। अर्जुन को हर दिन नए लोग मिल रहे थे, नए चेहरे, नए रिश्ते, लेकिन उसके अंदर कुछ बेचैनी थी, जो वह समझ नहीं पा रहा था।
एक दिन कॉलेज के बाद, जब वह अपने नए घर की ओर जा रहा था, उसने देखा कि घर के पास एक पुरानी हवेली है। वहाँ की दीवारें पुरानी थीं, और सब कुछ इतना पुराना था जैसे समय ने वहाँ अपना ठप्पा लगा दिया हो।
"दरिया विला"
यह जगह कुछ अजीब थी, जैसे कुछ पुरानी कहानियों का हिस्सा हो। उसने ज्यादा सोचा नहीं और अपने रास्ते पर चल दिया। लेकिन कुछ दिन बाद, जब वह रात को अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था, तब उसने कुछ महसूस किया। अजीब सा ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा, और एक पल के लिए उसने देखा कि कोई लंबी सी छाया उसकी खिड़की के पास से गुजर रही थी।
अर्जुन ने अपने चेहरे पर से पसीना पोंछा और सोचा कि शायद उसका दिमाग थोड़ा थक गया हो। लेकिन यह महसूस करना, यह एक अजीब सा झटका था। उसने खुद को समझाया, “हो सकता है कोई और इंसान हो जो यहाँ से गुजर रहा हो।” लेकिन उस दिन के बाद, वह भावना बार-बार उसके दिल में उगती रही, जैसे कुछ उसे कहना चाहता हो।
धीरे-धीरे, वह पुरानी हवेली की ओर उसकी रुचि बढ़ने लगी थी। हर रात उसके सपने में वह हवेली आने लगी, और हर दिन उसका दिल उसे कुछ और खींचने लगा। अर्जुन को लगने लगा था कि यह सब उसके दिमाग का खेल हो सकता है, लेकिन फिर भी कुछ था जो उसे बेचैन कर रहा था। यह बेचैनी बस इस शहर तक सीमित नहीं थी, कुछ और था, जो अर्जुन को खुद तक पहुँचने के लिए मजबूर कर रहा था।